प्रमुख कृषि वैज्ञानिक
1.M.s स्वामीनाथन
गेंहू विशेषज्ञ (गहू प्रजनन वैज्ञानिक)
भारत में हरित क्रांति इन्ही के द्वारा लाई गई अतः इन्हे भारत में हरित क्रान्ति का जनक माना जाता है।
इनको विश्व का पहला खाद्य पुरस्कार (1987 में) FAO द्वारा दिया गया। इनके द्वारा (2004) में राष्ट्रीय किसान आयोग की स्थापना की गई।
भारत में हरित क्रान्ति गेंहू व चावल की बौनी किस्मों के कारण 1966-67 में आई थी।
2. वर्गीज कुरियन
ये श्वेत क्रांति के पितामह के नाम से जाने जाते है।
इन्होंने वर्ष 1970 – 96 तक तीन चरणों में ऑपरेशन फ्लड योजना चलाई।
ये राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB)- आनन्द, गुजरात के प्रथम अध्यक्ष बने।
इन्हें दूसरा विश्व खाद्य पुरस्कार 1989 में प्राप्त हुआ।
अमृता पटेल NDDB- आनन्द गुजरात की प्रथम महिला चेयरमेन बनी।
3. डॉ. नॉरमन ई बोरलोग
ये विश्व में हरित क्रांति के पितामह के नाम से जाने जाते है।
इन्हे 1970 में नॉबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
ये अमेरिकन व्हीट सांइटिस्ट थे, जो सिमिट, मैक्सिकों में कार्यरत थे।
4.डॉ. S.K. वशल -
ये मैक्सिको में मक्का के वैज्ञानिक है।
तथा इनको क्वालिटी प्रोटीन मक्का (QPM) के लिए सन् 2000 में विश्व खाद्य पुरस्कार प्राप्त हुआ।
इन्होने मक्का में ट्रिप्टोफेन एवं लाइसीन अमीनो अम्ल की मात्रा बढ़ाने वाले जीन को खोजा एवं मक्का की किस्मों में इनकी प्रतिशत मात्रा बढ़ाई।
5. Dr. K. L. चड्डा
ये फल वैज्ञानिक (Pomologist) थे।
इनको सुनहरी क्रांति के पितामह या आधुनिक उद्यानिकी के पितामह कहलाते है।
6.Dr. R.S. परोदा
राजस्थान से सम्बन्धित ।
ये ICAR में चारा वैज्ञानिक (Forage breeder)
तथा ICAR के महानिदेशक (DG) भी रहे है
वर्तमान में हरियाणा किसान आयोग के अध्यक्ष है
Agriculture bio chemistry
1. सुपर गेंहू (Super wheat) –
गैंहू अनुसंधान निदेशालय (WDR) करनाल, हरियाणा द्वारा गेंहू की किस्मों में 15 से 20 प्रतिशत उपज में बढ़ोत्तरी लाई गई जिसे सुपर गेंहू नाम दिया गया।
2. ट्रांसजैनिक पादप (Transgenic plants)
पौधो की आनुवांशिक संरचना अर्थात जीन में बदलाव लाने को
आनुवांशिक रूपान्तरित पादप कहते हैं परम्परागत पौधों की किस्मों में एक और एक से अधिक अतिरिक्त जीन जो मनुष्य के लिए लाभदायक हो जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा कृत्रिम रूप से पौधो में डाली जाती है। जैसे - बीटी कपास, बीटी बैंगन, बीटी तम्बाकु, बीटी मक्का, रूपान्तरित सोयाबीन, रूपान्तरित सरसों एंव सुनहरा धान
विश्व की पहली ट्रांसजैनिक फसल तम्बाकु (1987) थी।
विश्व में ट्रांसजैनिक फसल उगाने में USA का प्रथम स्थान (44%) है बाद में ब्राजील (25%), भारत का चौथा स्थान है।
विश्व में ट्रांसजैनिक फसलों का उत्पादन सबसे अधिक शाकनाशी रोधी जीनों (Herbicide resistant traits) के लिए किया जाता है।
भारत में में ट्रांसजैनिक फसल उत्पादन में बीटी कपास उगाई जाती है जिसका सबसे अधिक क्षेत्रफल गुजरात में है।
(i) बी.टी. कपास ( Bt. Cotton)
• अमेरिकी कपास के पौधों में बेसिलस थुरिन्जेनसिस नामक मृदा बेक्टीरिया के जीन प्रोद्योगिकी द्वारा कपास के पौधों में डाला गया है जिसे Bt कपास कहते हैं।
बीटी कपास में बेसिलस थुरिन्जेनसिस नामक बेक्टीरिया के क्रिस्टल प्रोटीन (Cry gene) पाये जाते है जो डेल्टा एन्डो टॉक्सीन पैदा करते है जो कपास को उसकी प्रमुख लटों (Cotton Boll worms) के प्रकोप से बचाता है।
विश्व में सर्वप्रथम बीटी कपास की व्यापारिक खेती 1996 में शुरू। बी.टी. कपास की प्रथम पीढ़ी (Bollgourd-I) के लिए जिम्मेदार केवल Cry-1Ac जीन थी ।
जबकी बी.टी. कपास की द्वितीय पीढ़ी (Bollgourd-II) सन् 2006 में वैश्विक स्तर पर व्यापारिक खेती के लिए दोहरी जीन Cry-1Ac एवं Cry - 2 Ab से शुरू हुई।
(ii) गोल्डन राइस (Golden rice)
गोल्डन राइस आनुवांशिक रूपांतरित धान है।
इसमें बीटा कैरोटिन की अधिक बढ़ाने वाली जीन डाली गयी है गोल्डन राइस की किस्मों में विटामिन ए की मात्रा अधिक होती है।
3. सुपर राइस (Super Rice) -
सामान्य धान से 25% अधिक उपज देने वाली किस्मों का आविष्कार सुपर राइस के नाम से जाना जाता है।
इसे डॉ. गुरदेव सिंह खुश ने IRRI मनिला (फीलिपाइन्स) में विकसित किया।
4. हाइब्रिड धान (Hybrid Rice)
. विश्व में सबसे पहले हाइब्रिड धान चीन में 1974 में प्रोफेसर लोंग पिंग यॉन द्वारा विकसित किया गया।
इसलिए लोग पिंग यॉन को हाइब्रिड धान के पितामह कहते हैं । चीन के बाद हाइब्रिड धान विकसित करने में भारत का द्वितीय स्थान है।
भारत में संकर धान के पितामह ई ए सिद्दीकी कहलाते है, भारत में विकसित हाइब्रिड धान की प्रथम किस्म MGR-1 (CoRH-1) - TNAU (कोयम्बटुर) द्वारा विकसित की गई।
5. हाइब्रिड सरसों (Hybrid mustard)
सरसों की पहली हाइब्रिड किस्म NRC HB- 506 हैं जो DRMR, सेवर भरतपुर द्वारा (2009) विकसित की गई।
राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र सेवर, भरतपुर (Raj.), 20 अक्टूबर 1998 में ICAR के अधीन स्थापित हुआ
जो सन 2009 में डायरेक्ट्रेट रिसर्च ऑफ मस्टर्ड एवं रेपसीड ( DRMR) में तब्दील हुआ।
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